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निलावंती की कहानी (भाग - 2)

3 February 2025 by
NARESH KUMAR JAIN
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रावसाहब और तांत्रिक दोनों ही बेताल की मूर्ति के पीछे से चल पडे। जैसे-जैसे वे जंगल के अंदर जा रहे थे वैसे-वैसे जंगल और ज्यादा घना हो रहा था। वे इतना अंदर पहुँच गए कि दोपहर होने के बावजूद रात जैसा अंधेरा छा रहा था। सीधे चलना, जितना कहा गया था उतना आसान नहीं था। क्योंकि रास्ते में पेड-पौधे, बडी-बडी शिलाएँ इतनी थीं कि कई बार रास्ता भटक जाते थे। उन्होंने मशाल जलायी जो साथ में लाए थे। पता नहीं कितनी देर हुई लेकिन न वेताल की मूर्ति दिखने का नाम ले रही थी, न जंगल खत्म होने का। अचानक से उन्हें एक आकृति नजर आई, साफ नहीं दिखी लेकिन पता चल रहा था कि वह एक मूर्ति है। दोनों ही मूर्ति के पास पहुँचे और सोचने लगे कि अब आगे क्या? तभी मूर्ति जिसकी पीठ इनकी तरफ थी वह अपना सिर इनकी तरफ घुमाने लगी। दोनों ही डर से काँपने लगे। उन्हें समझ आया कि क्यों बाजिंद की खोज में आया हर इंसान मरा हुआ पाया गया था। वह था डर, लेकिन सिर्फ डर नहीं, जिस जगह पर वे खडे थे वहाँ की जगह धीरे-धीरे सिकुडने लगी, इतनी कि लगता था वे दोनों उसमें पिस जाएँगे। चारों ओर से जगह इतनी संकरी हो गई कि उन दोनों का दम घुटने लगा तभी उनके पैरों के नीचे एक सुरंग तैयार हो गई और वे दोनों उसमें गिर गए। वह सुरंग कहीं निकलने का गुप्त रास्ता था। तांत्रिक और राव साहब दोनों ही उस पर से फिसलने लगे। कुछ देर बाद वे कहीं पर गिर गए। जंगल के मुकाबले वहाँ पर बहुत प्रकाश था। उन्होंने देखा वह कोई पुराना किला था। बाकी किलों की तरह यह ऊँचाई पर नहीं था बल्कि जमीन की सतह के काफी नीचे बना हुआ था। किले की हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी। कई दीवारें गिर गई थीं, कुछ जगहों से छत टूट चुकी थी और नमी से पत्थर सड गए थे।

उन दोनों को यह पता नहीं चल पा रहा था कि वे जंगल के कौन से हिस्से में हैं। दोनों ही वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगे। क्योंकि वे जहाँ से गिरे थे उस सुरंग का छोर दस-बारह हाथ ऊँचाई पर था। चढाई सीधी थी इसलिए वहाँ पर आसानी से पहुँचा नहीं जा सकता था। दूसरी बात यह थी कि वे उस जगह वापस जाना भी नहीं चाहते थे। जैसा कि किला जमीन की सतह के नीचे उकेरा गया था तब भी बहुत विशाल परिसर में फैला हुआ था। जब इसे बनाया गया था तो मजदूर नीचे आते ही होंगे तो ऊपर चढने के लिए कोई न कोई रास्ता जरूर होना चाहिए था, पर बहुत देर तक ढूँढने के बाद भी ऊपर जाने का जरिया मिल नहीं रहा था। परिसर में बहुत सी गुफाएँ भी थीं लेकिन वह अंदर कितनी गहरी हैं इसका अंदाजा नहीं लग रहा था। इनके पास जो मशाल थी वह थोडी देर पहले की हडबडी में कहीं गिर गई थी। समय निकलता जा रहा था। दिन का कौन सा समय है यह तो पता नहीं चल पा रहा था लेकिन वह कभी न कभी तो ढलने वाला तो था ही। तांत्रिक का कहना था कि ऐसी जगह पर रात के समय रुकना ठीक नहीं होता, कई बार ऐसी जगहें श्रापित होती हैं। उसका यह भी कहना था कि हो न हो जिन लोगों की जान गई है वे इसी तरह मारे गए हों। राव साहब को तांत्रिक की बात जँच गई। अब तो उन्हें भी चिंता हो रही थी, बात सिर्फ बाहर जाने की नहीं, जान भी बचानी थी।

वहाँ पर बाईस गुफाएँ थीं मगर किसी भी गुफा में प्रकाश नहीं था जिससे अंदर जाकर रास्ते की खोज की जा सके। तांत्रिक को एक चकमक पत्थर दिखाई दिया तो उसने आग जलाकर मशाल बनाने की सोची। बहुत देर कोशिश करने के बाद आखिरकार आग जल गई थी पर दिन ढल चुका था। अंधेरा धीरे-धीरे और घना हो रहा था। उनके पास ज्यादा समय नहीं था। पहली गुफा के अंदर मशाल लेकर दोनों दाखलि हो गए। लगता था कि गुफा बहुत दूर तक फैली हुई थी क्योंकि मशाल का प्रकाश ज्यादा दूर तक पहुँच नहीं पा रहा था। वह जितना भी आगे जाते उतनी गुफा और दिखाई देने लगती थी। दिन भर जंगल में चलने के कारण पहले ही दोनों के पैरों ने जवाब दिया था। ऊपर से वह उस सुरंग से भी गिरे थे जिससे भी चोट पहुँची थी। पेट में चुहे डांस कर रहे थे और ऐसे में यदि एक-एक गुफा इतनी बडी हुई तो क्या कर सकते थे। मशाल आधी खत्म हो गई तभी तांत्रिक ने कहा कि हम और आगे नहीं जा सकते क्योंकि फिर वापस जाने के लिए प्रकाश नहीं बचेगा। अगर इसी गुफा में फँसे रह गए तो दिन निकलने पर भी प्रकाश नहीं आएगा और दिशा का पता न चलने के कारण गुफा के अंदर ही फँस जाएँगे। तो राव साहब ने कहा कि पता नहीं हमारा यह निर्णय गलत निकल जाए, हो सकता है कि बाहर जाने का रास्ता इसी गुफा में से निकले।

समस्या दोनों ओर से थी और वे दोनों ही दुविधा में पड गए। दोनों को एक दूसरे के मत सही लग रहे थे। निर्णय लेने के लिए वक्त नहीं था, नहीं तो मशाल वहीं पर बुझ जाती। वे गुफा के बहुत अंदर तक आए थे। तांत्रिक ने कहा कि राव साहब आपकी बात ठीक है लेकिन हम पहले बाहर जाते हैं और बहुत सारी मशाल बनाते हैं और फिर दूसरी गुफा से फिर से शुरुआत करेंगे। यदि बाकी गुफाओं में रास्ता नहीं मिला तो फिर से पहली गुफा में जाएँगे, इससे हमारे बचने के मौके बढ जाएँगे। राव साहब ने बात मान ली। दोनों गुफा से बाहर आ गए। तांत्रिक की बात बिल्कुल सही थी क्योंकि गुफा के दरवाजे तक पहुँचते ही मशाल बुझ गई थी। रात को क्योंकि तारे नजर आ रहे थे, तो तांत्रिक जो रात को खजाने निकालने के लिए जाते समय तारों से ही समय का अंदाजा लगाया करता था, वह समझ गया कि आधी रात बीत चुकी है। अब खतरा पहले से ज्यादा बढ चुका था क्योंकि रात का यही वह समय था जिसमें सभी अनहोनी घटनाएँ हुआ करती हैं। साधनों की कमी की वजह से मशालें बनाने में बहुत समय लग रहा था। वैसी परिस्थिति में भी तांत्रिक ने पाँच मशालें बना ली थीं। लेकिन उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी मशालें एक गुफा के लिए भी काफी होंगी।

तांत्रिक भी थक गया था। उसका मन तो कह रहा था, कि रास्ता खोजना जरूरी है लेकिन तन साथ नहीं दे रहा था। उसे विश्राम की सख्त जरूरत थी। राव साहब की स्थिति भी इससे अलग नहीं थी। दोनों ने सुबह होने का इंतजार करने का फैसला किया और बाहर ठंड लग रही थी इसलिए उस गुफा के अंदर सोने चले गए जिसमें वे पहले जा चुके थे। वे ज्यादा अंदर नहीं गए थे। दोनों लेट गए, भूख और थकान के मारे उनका बुरा हाल था। लेटते ही दोनों की आँख लग गई।

तभी राव साहब को कहीं से पायल की आवाज सुनाई दी। पहले उसने सोचा कि यह उसका वहम होगा, कभी-कभी थकान की वजह से भी दिमाग भ्रम पैदा करने लग जाता है। फिर से वैसी ही आवाज, अबकी बार तांत्रिक की भी आँखें खुल गईं और वह उठकर बैठ गया। राव साहब को पहले से उठा देखकर तांत्रिक जान गया कि उसे अकेले को वह आवाज नहीं सुनाई दी। फिर से पायल की आवाज आई, इस बार ज्यादा तेज। दोनों को डर तो बहुत ज्यादा लग रहा था लेकिन उसका सामना करने के अलावा उन दोनों के पास कोई रास्ता भी तो नहीं था। एक दूसरे का हाथ थामे हुए दोनों गुफा से बाहर निकले और देखने लगे कि आवाज कहाँ से आ रही है। थोडी देर बाद फिर से आवाज आई, वह किसी गुफा से आ रही थी पर कौन सी यह पता नहीं चल रहा था।

तांत्रिक ने मशाल जलायी और वे दोनों हर एक गुफा के मुँह पर जाकर सुनते कि आवाज कहाँ से आ रही है। सभी गुफाओं के मुँह एक दूसरे से सटे हुए थे। वे जैसे ही तेरहवीं गुफा के पास पहुँचे आवाज ज्यादा ही तेज हो गई। वे दबे पाँव गुफा के अंदर जाने लगे, डर अब हद से ज्यादा बढने लगा था। तांत्रिक का पहले का डरपोक स्वभाव फिर से उभर गया और उसके पाँव थर-थर काँपने लगे। वे गुफा के काफी अंदर चले गए थे लेकिन जितना वे आगे जाते थे आवाज उतनी ही अंदर से आती हुई लगती थी।

तभी बहुत दूर कहीं एक टिमटिमाती रोशनी दिखी, बिल्कुल तांत्रिक के हाथ की मशाल जैसी। वे धीरे-धीरे उस ओर बढने लगे। वह रोशनी गुफा के अंदर बनी एक और गुफा से आ रही थी। वे उस छोटी गुफा के मुहाने तक गए और जैसे ही अंदर का दृश्य देखा तो दंग रह गए। एक किशोरवय लडका जिसके हाथ में एक लाठी थी जिसमें घुँघरू बँधे हुए थे। वह अपनी लाठी जमीन पर मार रहा था, उससे पायल जैसी आवाज निकल रही थी। उसके आस-पास जंगल के हर एक जानवर का एक-एक प्रतिनिधि उपस्थित था, जैसे उन सबकी सभा हो रही हो और वह लडका उनका नेतृत्व कर रहा हो। वह लडका प्रत्येक जानवर से बात कर रहा था। तांत्रिक और राव साहब समझ गए कि यह वही है जिसकी तलाश वे कर रहे थे, ‘‘बाजिंद’’।

गुफा में शेर, भेडिया, लोमडी, लकडबग्घा, हिरण, मोर, साँप और बिच्छू आदि कई प्रकार के जंगली पशु थे। जंगल में जिनका आपस में बैर होता था वे जानवर भी एक दूसरे के पास बैठे हुए थे। तांत्रिक और राव साहब हैरान हो गए। वे सोच रहे थे कि अंदर कैसे जाएँ, कहीं किसी जानवर ने हमला कर दिया तो? वे गुफा के अंदर तो आ गए लेकिन आगे नहीं बढे। तभी उस लडके की नजर उन पर पडी। उसने अपना सिर हिलाकर उनको पास आने के लिए कहा। तांत्रिक और राव साहब दोनों भी उसके पास चले गए।

उस लडके का चेहरा इतना आकर्षक था कि न तांत्रिक ने न ही राव साहब ने इतना खूबसूरत इंसान अपनी पूरी जिंदगी में देखा था। उसने सिर्फ एक धोती पहनी हुई थी। उसका बदन बेहद गठीला था, पुष्ट भुजाएँ थीं, लंबे बाल कंधे पर झूल रहे थे और मुस्कान के तो क्या कहने। कोई इंसान ही क्या जानवर भी उस मुस्कान का कायल हो जाता। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी जो उन्होंने किसी के चेहरे पर नहीं देखी थी। संसार की सभी सुविधाओं से दूर सिर्फ इन जानवरों के बीच रहकर भी वह इतना खुश दिखता था जितना खुश संसार का सबसे अमीर इंसान भी न हो।

लडके ने उनसे कहा कि वे यहाँ कैसे पहुँचे यह उसे मालूम है लेकिन उनके यहाँ आने का हेतु क्या है यह वह जानना चाहता था। उसने कहा कि यदि वे निलावंती के बारे में जानने आए हैं तो मुश्किल है कि वे यहाँ से जिंदा वापस जाएँ। उन्हें मारा नहीं जाएगा लेकिन निलावंती का रहस्य ही यह था कि उसे एक बैठक में सुनना पडता था। लडके का कहना था कि वह एक बैठक में उसे सुना सकता था लेकिन सुनने वाले में इतनी क्षमता न होने के कारण वे अपनी जान से हाथ धो देते थे।

तब राव साहब ने कहा कि उन्हें निलावंती के बारे में सिर्फ इतना जानना है कि उनके किसी पुरखे ने लिखी किताब का उससे क्या संबंध है, उनकी जानवरों की भाषा समझने में कोई रुचि नहीं है और अपने खानदानी खजाने, तांत्रिक से मुलाकात और उस गुफा तक पहुँचने की पूरी कहानी बताई।

तब लडके ने कहा, ‘‘मेरा कोई नाम नहीं है। मैंने यहाँ आने वाले लोगों के मुँह से ही सुना है कि लोग मुझे बाजिंद के नाम से जानते हैं। लोग समझते हैं कि मैं जानवरों की भाषा जानता हूँ, यह निलावंती की वजह से है लेकिन मैंने उस ग्रंथ को पढकर जानवरों की भाषा नहीं सीखी। खुद रुद्रगणिका निलावंती ने मुझे यह भाषा सिखाई है।’’

‘‘क्या? निलावंती स्त्री थी? यह हमें नहीं पता था। हमने सिर्फ इतना ही सुना है कि निलावंती नाम का एक ग्रंथ है जिसे पढने से जानवरों की भाषा समझ आती है,’’ राव साहब ने कहा।

‘‘लेकिन आप निलावंती के बारे में क्यों जानना चाहते हैं, जरा बताइए,’’ बाजिंद ने कहा।

राव साहब ने अपनी जेब में रखा वह कागज निकाला जिस पर खजाने का उल्लेख किया गया था और जिस पर निलावंती अक्षर उलटे लिखे गए थे। वह कविता पढते ही बाजिंद मुस्कुराने लगा। तांत्रिक और राव साहब दोनों उसके चेहरे की तरफ देखने लगे। बाजिंद ने कहा कि इसका उत्तर तो बहुत ही आसान है।

बाजिंद ने कहानी शुरू की -

‘‘क्योंकि यह मेरे जन्म के पहले की बात है और मेरी उम्र अभी 1100 साल है तो यह घटना बहुत पुरानी है। आप इसे ध्यान से सुनिए क्योंकि इसी कहानी में आपके खजाने का रहस्य छुपा हुआ है।’’

‘पहले के लोग बहुत ही अक्लमंद थे। वे जानते थे कि मनुष्य प्रकृति के साथ इतना एकरूप नहीं हो पाता जितना पशु, पक्षी, पेड, पौधे होते हैं। इससे वे इस सृष्टि में अपना वजूद बनाए रखते हैं। वे प्रकृति के नियमों के बारे में हमसे बहुत ज्यादा जानते हैं। सोचिए हजारों पक्षी बिना किसी दिशादर्शक के एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। प्रत्येक वर्ष वे यह कैसे कर पाते हैं? प्रकृति की अपनी भाषा है, जिससे वह हमसे संवाद करती है। मनुष्यों को भी वह भाषा समझ आती थी। लेकिन फिर जैसे-जैसे मनुष्य यंत्रों का सहारा लेने लगा तो उसे प्रकृति के साथ संवाद करने की आवश्यकता कम लगने लगी। जानवरों की भाषा जानना जरूरी होता था, वह भी एकाध की। इतना काफी नहीं था।

प्रकृति के रहस्य उन लोगों को जानने थे जो अब भी प्रकृति से जुडे रहना चाहते थे। जानवरों से बात करने का एकमात्र तरीका उनकी भाषा सीखना ही था। इसलिए उन रहस्यों को उजागर करने के लिए जानवरों की भाषा सीखने की कोशिश हमेशा से ही जारी था। हालाँकि कामयाब कोई विरला ही हो पाता था।

फिर किसी ने जाना कि बच्चे का जन्म हो जाने के बाद यदि उसको पहली बार पिलाया जाने वाला पानी जंगल में रख कर, जब सभी पशु, पक्षी, जानवर पी लें तो उसका एक घूँट बच्चे उन सभी जानवरों की भाषा का ज्ञानी बनाएगा जिन्होंने वह पानी पिया है। जिसने यह बात खोजी थी वह मनुष्य था निलावंती का पिता। जब निलावंती पैदा हुई थी उसके तीन दिन पहले उसके पिता ने जंगल में एक बर्तन में पानी भरकर रखा था। उन तीन दिनों में जंगल के लगभग सभी जानवरों का मुँह उस पानी को लग गया था। निलावंती पैदा होने के तुरंत बाद उसको वह पानी पिलाया गया। उसका प्रभाव यह हुआ कि वह चिडिया, चींटी, कौए, कुत्ते आदि बहुत से जानवरों की भाषा समझने लगी। वह जानवरों की भाषा समझती थी तो उनको उन्हीं की भाषा में उत्तर देती थी। लेकिन जब गाँव के लोगों ने यह सुना कि छोटी सी लडकी के मुँह से इंसानी भाषा से पहले जानवरों की आवाजें निकल रही हैं तो उन्होंने उसके पिता से कहा कि यह लडकी श्रापित है। इससे गाँव पर कोई संकट आ सकता है, तुम इसे जिंदा नहीं रख सकते। निलावंती के पिता ने गाँव वालों को समझाया कि यह सिर्फ उसके किए हुए प्रयोग का नतीजा है पर किसी ने उसकी एक न सुनी।

पंचायत बिठाई गई और सभी ने एकमत से निर्णय किया कि ऐसी लडकी जो जानवरों की आवाजें निकालती हो उसे जीने का कोई अधिकार नहीं है। हो सकता है उसके माध्यम से जंगली जानवर साँप, बिच्छू गाँव में घुसें और हमारे बच्चों और प्रियजनों को नुकसान पहुँचाएँ। निलावंती के पिता ने सोचा कि अगर वह गाँव छोडकर चले जाएँगे तो उसकी नौबत ही नहीं आएगी। निलावंती के पिता ने यह प्रयोग इसलिए किया था कि उसे पशुओं की अद्भुत दुनिया के रहस्य समझने थे, कि कैसे भूकंप, उल्कापात, बाढ, बारिश का प्रमाण और समय इसका पता इन जानवरों को पहले ही चल जाता है। यदि इनसे यह बातें जान ली जाएँ तो हम भी मनुष्यों की कितने संकटों से रक्षा कर सकते हैं।

जब पंचायत के निर्णय का पता निलावंती के माता-पिता को चला तो उनके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। निलावंती की माँ ने कहा कि हमें कैसे भी करके इस लडकी को बचाना चाहिए, जिन पशुओं की भाषा जानने की वजह से इसकी जान खतरे में पड गई है अब वे ही इसकी रक्षा करेंगे। सिर्फ बारह दिन की निलावंती को लेकर उसके माता-पिता जंगल की ओर भागे और उसे लेकर वहीं रहने लगे। निलावंती को भी जंगल बहुत पसंद आया और जंगल के जानवरों को भी निलावंती भा गई। सभी जानवर जिनकी निलावंती भाषा बोलती थी वे निलावंती से बहुत प्यार करते थे। जिनकी भाषा नहीं आती थी उनकी भाषा निलावंती सहवास से सीख गई। दो साल की होने तक तो निलावंती जंगल के किसी भी जीव की भाषा बोल और समझ रही थी और साथ ही अपने माता-पिता के साथ मनुष्यों की भाषा में भी बोल रही थी। उसके पिता का जो सपना था वह साकार हो रहा था। उन्हें ऐसे-ऐसे रहस्य निलावंती के माध्यम से पता चल रहे थे जो कभी कानों से भी नहीं सुने थे।

निलावंती को कई बार जानवर या साँप कहीं दबे हुए खजाने के बारे में बता देते थे, तो निलावंती के पिता जाकर वह खजाना लाते और उससे कई गरीबों की गुप्त रूप से मदद करते थे। ऐसे ही सोलह साल निकल गए। अब निलावंती एक बहुत ही सुंदर किशोरी में बदल गई थी।

एक बार की बात है जब 5-6 लुटेरे कहीं से निलावंती के पिता का पीछा करते हुए उस जंगल में पहुँच गए। निलावंती और उसके परिवार को जीने के लिए जो भी आवश्यक था वह उस जंगल से मिल जाता था। थोडा बहुत खर्चा सिर्फ कपडों पर ही होता था तो बहुत सा खजाना उसी गुफा में पडा हुआ था। लुटेरों ने जब वह देखा तो उनकी आँखें चौंधिया गईं। बहुत सारा खजाना बिना किसी मेहनत के मिल गया यह उनके लिए बडी खुशी की बात थी। निलावंती के उपस्थित रहते कोई भी उस गुफा की तरफ नहीं आ सकता था क्योंकि जंगल के सभी जानवर उसकी रक्षा करते थे और उनसे उसे कहीं की भी घटना का पता चल जाता था।

लुटेरों ने खजाना छीनने के लिए निलावंती के माता-पिता को मार डाला। हालाँकि यह घटना एक चील के माध्यम से निलावंती को तुरंत पता चल गई मगर उसे आने में थोडी देर हो गई। वह पहुँची तब तक लुटेरे जा चुके थे मगर ज्यादा दूर नहीं जा सके। निलावंती ने जानवरों को संदेश भेजा कि कोई भी जिंदा जंगल से बाहर नहीं निकल पाए। लुटेरे जंगल से नहीं निकल पाए, रास्ते में ही हाथियों के झुंड ने उन्हें कुचल डाला। पर इस घटना ने निलावंती को बहुत आहत किया। उसके हृदय को बडी चोट पहुँची। उसके पिता बहुत ही साधु स्वभाव के इंसान थे, उन्होंने कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहा था।

अब तक तो जंगल के पशु ही निलावंती के सब कुछ थे। उन्हीं के लिए जीना और उन्हीं के लिए मरना यही निलावंती के जीवन का उद्देश्य हो गया था। लेकिन उसके माता-पिता की हत्या के साथ उसको एक और उद्देश्य मिला, समाज के बुरे लोगों का नाश करना। इसके लिए जरूरी था कि वह खुद भी मौत से बच सके। उसने जानवरों से पूछकर संजीवनी बूटी का पता लगाया जिसके खाने से मनुष्य मौत को टाल सकता था। जब उसने वह बूटी खाई तो वह भी मृत्यु के भय से रहित हो गई। उसने अनेक ऐसे लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिनसे समाज को खतरा था और अपने पिता के जैसे बहुत से लोगों की मदद भी की। उसकी अमरता, जानवरों की भाषा समझने की उसकी अद्भुत शक्ति इससे उसकी गणना कुभाण्डों में होने लगी। कुभाण्ड वह लोग हैं जिनमें अद्भुत शक्तियाँ होती हैं। उन्हें भगवान शिव के गणों में भी गिना जाता है।’’

एक दिन की बात है, एक तरुण व्यापारी जंगल के रास्ते से कहीं जा रहा था। वह बैलगाडी में अपना माल एक गाँव से दूसरे गाँव जाकर बेचता था। वह पहले कभी भी इस रास्ते से नहीं गया था इसलिए उसे यह नहीं पता था कि इस जंगल में किसी अपरिचित का आना प्रतिबंधित है। क्योंकि निलावंती के माता-पिता की हत्या के बाद से जंगल के पशु निलावंती की सुरक्षा की बहुत चिंता करते थे। वे किसी को भी जंगल में घुसने नहीं देते थे। मगर वह व्यापारी तो अंदर आ गया था। भेडियों ने उसकी बैलगाडी का पीछा शुरू किया। भेडियों के झुंड को देख बैल डर गए और उन्होंने जोर से दौडना शुरू किया। बैलगाडी बुरी तरह से खिंचने के कारण पत्थरों पर टकरा के टूट गई। व्यापारी नीचे गिरकर बेहोश हो गया।

निलावंती को उस व्यापारी के बारे में पता चला तो वह उसके पास पहुँच गई। उसने देखा कि एक खूबसूरत नौजवान बेहोश पडा है। उसके सिर पर गहरी चोट आई है। उसका अगर इलाज नहीं किया गया तो वह मर जाएगा। वह उसे अपने साथ अपनी गुफा में लेकर गई। निलावंती को जडी-बूटियों का ज्ञान था तो उसने उसका अच्छी तरह से इलाज किया। दो दिन बाद जब उस नौजवान को होश आया तो उसने देखा कि एक अति सुंदर लडकी उसका खयाल रख रही है। उसने निलावंती से बात की और अपना नाम अनिल बताया। निलावंती ने अनिल से कहा कि उसका पूरी तरह से इलाज होने में कुछ और दिन लग सकते हैं। उन ‘‘कुछ’’ दिनों में अनिल को निलावंती से प्यार हो गया। कुछ ही दिनों में अनिल पूरी तरह से ठीक हो गया। उसने अपने मन की बात निलावंती को बता दी। निलावंती को भी अनिल अच्छा लगा था और वह उसकी इस हालत का खुद को जिम्मेदार मान रही थी। सहानुभूति भी प्यार होने की एक वजह होती है। इसी वजह से निलावंती को भी उससे प्यार हो गया था।

अनिल ने निलावंती से विवाह के लिए पूछा। निलावंती ने कहा कि वह उससे विवाह करेगी लेकिन उसकी कुछ शर्तें हैं। अनिल ने शर्तें पूछीं तो निलावंती ने बताया उसकी पहली शर्त यह है कि वह रात में कभी भी उसके साथ नहीं सोएगी। दूसरी शर्त यह है कि वह अगर रात को कहीं जाए तो वह उसे नहीं ढूँढेगा। अनिल ने उसकी दोनों शर्तें मान लीं। पाँच साल वे बहुत खुशी-खुशी साथ रहे।

एक दिन दोपहर को निलावंती और अनिल जंगल में भटक रहे थे तभी एक नेवला और नेवली कहीं जाते दिख गए। नेवली उदास लग रही थी। निलावंती ने पूछा कि वह क्यों दुःखी है। नेवली ने बताया कि उसका पति अँधा है इसलिए वह उसको कभी अकेला नहीं छोड सकती। निलावंती के पास अंजन था जो निलावंती ने उस नेवले की आँख में लगाया। तुरंत नेवले को सबकुछ दिखाई देने लगा। नेवली ने निलावंती को दो दिव्य रत्न दिए, कहा कि ये दो रत्न बहुत शक्तिशाली हैं। इसमें से पहला जिसके पास होगा वह किसी के भी मन की बात जान सकता है और दूसरा पास होने से वह किसी से भी हारेगा नहीं। निलावंती का पति अनिल दूर से सब देख रहा था। जब उसने निलावंती से पूछा तो निलावंती ने भोलेपन से बता दिया मगर सिर्फ एक मणि के बारे में जिससे कभी हार नहीं होती थी। दूसरे मणि के बारे में उसने कुछ नहीं बताया। इसलिए नहीं कि उसका अनिल के ऊपर विश्वास नहीं था बल्कि वह उस मणि की परीक्षा लेना चाहती थी।

अनिल की इच्छा हुई कि सदा जीत दिलाने वाली वह मणि उसके पास हो। उसने निलावंती से वह मणि माँगी। निलावंती ने कहा कि उसे उसकी क्या जरूरत है तो अनिल ने कुछ नहीं बताया। लेकिन उसने दूसरे मणि के प्रभाव से उसके मन की बात जान ली कि अनिल उस जंगल के बाहर जाकर उस राज्य पर विजय प्राप्त करना चाहता था जिसमें वह जंगल था। वह मणि उसके पास होने से यह बहुत आसान हो जाता।

निलावंती को उसके विचार जानकर आश्चर्य हुआ लेकिन उसने अनिल को यह पता नहीं चलने दिया। एक रात जब निलावंती और अनिल जो शर्तों की वजह से अलग-अलग सोते थे, सोए हुए थे तब अनिल को दूर से भेडिये के चिल्लाने की आवाज आई। वह निलावंती को बता रहा था कि उसे अब भगवान शिव के गणों में शामिल होना चाहिए। लेकिन शिवगणों में स्थान पाने के लिए जो चीज आवश्यक है वह एक प्रकार का तावीज था जिसका पता भेडिया उसे बताना चाहता था।

निलावंती ने भेडिये का संदेश सुना तो तुरंत वह नदी की तरफ निकल पडी। निलावंती के जाने के थोडी देर बाद अनिल भी उसके पीछे निकल पडा। निलावंती जान गई कि अनिल उसका पीछा कर रहा है लेकिन उसने उसे मना नहीं किया।

नदी के किनारे पहुँचने पर भेडिया निलावंती से मिला और उसने बताया कि अभी थोडी देर बाद एक प्रेत नदी में बहता हुआ आएगा, उसकी कमर में वह तावीज बँधा हुआ है जिसकी मदद से वह भगवान शिव के गणों में शामिल हो सकती थी। निलावंती नदी के किनारे ही उस प्रेत का इंतजार करती हुई बैठ गई। आधी रात के समय नदी में एक प्रेत बहता हुआ आया। निलावंती उस प्रेत के पास गई और उसे खींचकर किनारे पर लेकर आई।

अनिल पूरी घटना पेड के पीछे छुपकर देख रहा था। निलावंती की पीठ अनिल की तरफ थी तो उसे वह क्या कर रही है यह नहीं दिख रहा था। निलावंती ने प्रेत की कमर में बँधा तावीज देखा, वह बहुत ही विशेष दिख रहा था और खुद से चमक रहा था। निलावंती तावीज लेने लगी लेकिन वह इतनी मजबूती से बँधा था कि छूटने का नाम नहीं ले रहा था। निलावंती ने आस-पास देखा कि काटने के लिए कोई चीज मिल जाए पर पत्थर भी नहीं थे सिर्फ रेत ही थी। निलावंती दाँत से रस्सी काटने के लिए प्रेत के ऊपर झुक गई। अनिल जो पीछे से घटना देख रहा था उसे लगा कि निलावंती प्रेत खा रही है। वह बहुत डर गया और भागकर गुफा में जाकर बैठ गया जिससे निलावंती को कुछ पता न चले। अनिल को नहीं पता था कि निलावंती ने उसे उसके पीछे आते हुए देख लिया था।

बडी मुश्किल से वह तावीज निकालने के बाद निलावंती उसे लेकर अपनी गुफा में आ गई। अनिल वहीं पर बैठा हुआ था। उसने पूछा कि वह कहाँ गई थी। निलावंती ने उसे विवाह के वक्त की शर्त याद दिलाई। लेकिन अनिल ने कहा कि वह सब जानता है कि वह मुर्दा खाने के लिए गई थी और उसे अब ऐसी औरत से कोई संबंध नहीं रखना है, वह उसे छोडकर जा रहा है। निलावंती ने उसे रोका नहीं पर समझाने की कोशिश की, कि वह मुर्दा नहीं खा रही थी पर अनिल कुछ सुनने की हालत में नहीं था। वह तुरंत वहाँ से चला गया।

निलावंती को भगवान शिव के गणों में शामिल होने के लिए आवश्यक तावीज तो मिल गया था लेकिन उसने सोचा कि वह जाने से पहले आज तक उसने जितना ज्ञान इकट्ठा किया है उसकी विरासत ग्रंथ के रूप में पीछे छोडना चाहती थी।

उसने शुरुआत से सब कुछ लिखा, चींटी की भाषा कैसे समझें, उसके संकेत क्या होते हैं आदि प्रकार से धीरे-धीरे जंगल के सभी जानवरों के बारे में लिखा, उनकी भाषा लिखी। इसमें बहुत समय निकल गया। वह एक बहुत बडा ग्रंथ बन गया जिसका कोई नाम नहीं था, न ही पढने का कोई क्रम था। वह तो बस बहुत सी जानकारी का संकलन था। उसमें आत्माओं से संपर्क बनाने के तरीके भी लिखे थे।

अब उसे कोई शिष्य चाहिए था जिसे वह इस ग्रंथ को पढने का तरीका और उसके रहस्य बता सके। लेकिन इतने महत्त्वपूर्ण ज्ञान को वह इतनी आसानी से किसी को भी नहीं सौंप सकती थी।

वह हर दिन इसी तलाश में होती थी कि कोई ऐसा उसे मिल जाए जिसे यह ज्ञान सीखना तो हो लेकिन वह इसका गलत इस्तेमाल न करे। एक दिन जब वह जंगल में रोज की तरह घूम रही थी तब उसे मैं मिल गया। मुझे किसी कुँवारी माँ ने लोक-लज्जा के डर से जंगल में छोड दिया था। निलावंती ने मुझे इतने प्यार से पाला जितना मेरी माँ भी पाल नहीं सकती थी। मैं भी बडा होते-होते जानवरों की भाषा और वह सब ज्ञान जो निलावंती ने ग्रंथ में लिखा था सीख गया, हालाँकि इसके लिए ग्रंथ पढने की आवश्यकता नहीं पडी।

जब मैं सोलह साल का हो गया, जैसा मैं अब हूँ, तो निलावंती जिसे मैं माँ कहकर ही पुकारता था, मुझे मेरे उससे मिलने की कहानी बताई और कहा कि उसे अब उसकी असली जगह पर जाना होगा। उसने मुझे एक संजीवनी विद्या दे दी जिससे मैं दीर्घजीवी हो गया और मेरी आयु भी थम गई। पिछले हजार सालों से मैं सोलह वर्ष की अवस्था का ही हूँ। संजीवनी विद्या देने के बाद निलावंती ने किसी मंत्र का उच्चारण किया तो उसे लेने के लिए दूसरी शिवगणिकाएँ आईं। उनके साथ निलावंती हमेशा के लिए शिवगणों के साथ रहने चली गई। फिर मैं भटकते-भटकते इस जंगल में आया और यहीं पर बस गया। तब से मैं यही रहता हूँ और इस जंगल की रक्षा करता हूँ। बाजिंद ने कहानी पूरी की।

‘लेकिन तुमने हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया,’ तांत्रिक ने कहा।

‘हाँ! मैं बताना तो भूल गया कि तुम्हारे किसी पुरखे ने जो कविता लिखी है उसमें जो सागरतीर्थ का नाम है वह समुद्र के लिए नहीं लिखा गया है। असल में सागरतीर्थ उसी जगह का नाम है जहाँ निलावंती पैदा हुई थी। हजारों सालों में उसका नाम जरूर बदला होगा। लेकिन वह जगह मैं जानता हूँ क्योंकि मेरी माँ ने भी मुझे उसी तीर्थ के जंगल में पाया था,’ बाजिंद ने बताया।

‘आज वह जगह जानी जाती है रामलिंग के जंगल में से। महाराष्ट्र में रामलिंग बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल है,’ तांत्रिक ने बताया।

बाजिंद ने फिर दोनों को अपनी आँखें बंद करने को कहा और पलक झपकते ही उसी वेताल की मूर्ति के पास छोड दिया जहाँ से तांत्रिक और राव साहब ने जंगल में प्रवेश किया था।

तांत्रिक और राव साहब ने आँखें खोलीं तो सामने वही वेताल की मूर्ति थी जिससे आगे जंगल में रास्ता जाता था। उन्होंने अपने पीछे आवाज सुनी तो वही गडरिया वहाँ पर भेडें चरा रहा था और उनसे कह रहा था, ‘मेरी मानो तो यहाँ से वापिस चले जाओ। यहाँ से कोई जिंदा वापिस नहीं आया है।’

उनको यकीन नहीं हुआ कि इतना सब घट गया था पर समय अब भी वहीं का वहीं था। तो यह सच था, निलावंती से समय पर काबू किया जा सकता है। लेकिन निलावंती कहाँ है यह तो किसी को भी नहीं पता। उसे सिर्फ किस्मत से ढूँढा जा सकता है। निलावंती उसी को मिलती है जो उस ज्ञान का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहता। पर तांत्रिक को रामलिंग में खजाना ही खोजना था।

तांत्रिक और राव साहब रामलिंग पहुँच गए लेकिन वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि पहले किसी राजा को यहाँ का भी खजाना मिल गया था और उस पैसे से यहाँ रामलिंग का मंदिर बना हुआ था। अब क्या किया जाए, सब खत्म हो गया, खजाने की खोज भी और निलावंती की तलाश भी। खजाने का इस्तेमाल हो चुका था। निलावंती भी बाजिंद के पास सुरक्षित थी।

यह थी उस आखिरी इंसान की कहानी जिसने निलावंती की खोज की थी। लेकिन निलावंती आज भी रहस्य बनी हुई है। उसकी खोज करने वाले आज भी उसको ढूँढते रहते हैं।

आपको अगर निलावंती सुननी है तो आपको पता है कि महाबलेश्वर के जंगल में वेताल की मूर्ति के पीछे से रास्ता मिल जाएगा लेकिन क्या आप वहाँ सच में जाना चाहते हैं? हमें कमेंट में बतायें।

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NARESH KUMAR JAIN 3 February 2025
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