Skip to Content

निलावंती एक श्रापित ग्रंथ की पूरी कहानी

3 February 2025 by
NARESH KUMAR JAIN
| No comments yet

दोस्तों, निलावंती ग्रंथ को भारत सरकार ने बैन कर दिया है, क्योंकि यह ग्रंथ एक श्रापित यक्षिणी द्वारा लिखा गया है। ऐसा माना जाता है, कि जिसने भी लालचवश इस किताब को पढने की कोशिश की, उसकी मृत्यु हो गई या वह पागल हो गया। जब इस तरह के कई मामले सामने आने लगे, तो भारत सरकार ने इस ग्रंथ को पढने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया।

यह कहानी बहुत समय पहले की है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में एक आदमी अपनी पत्नी और एक छोटी सी बेटी के साथ रहता था। जब उसकी बेटी पांच वर्ष की हुई, तो उसकी माँ की मृत्यु हो गई। उस बच्ची का नाम निलावंती था। निलावंती की माँ की मृत्यु के बाद, निलावंती के पिता ने उस गाँव को छोड दिया और निलावंती को लेकर दूसरे गाँव में चले गए। निलावंती के पिता को आयुर्वेद का अच्छा खासा ज्ञान था, और निलावंती भी अपने पिता से आयुर्वेद की शिक्षा ले रही थी।

निलावंती में एक विशेष क्षमता थी, वह पेड-पौधों, जानवरों, और पशु-पक्षियों की भाषा समझ सकती थी। न केवल यह, बल्कि निलावंती के सपनों में शैतान भी आते थे और उसे जमीन के नीचे गडी हुई धन-दौलत के बारे में जानकारी देते थे। हालांकि, निलावंती के पिता के अच्छे संस्कारों के कारण, उसने कभी भी उस धन को नहीं निकाला।

निलावंती पेड-पौधों और शैतान द्वारा बताए गए मंत्रों को पीपल के पत्तों पर लिख लिया करती थी। जब निलावंती 20 से 22 वर्ष की हो गई, तब जो भूत-प्रेत उसके सपनों में आते थे, वे वास्तविक रूप में उसके सामने आने लगे।

कुछ समय बाद, निलावंती को यह पता चलता है कि वह एक श्रापित यक्षिणी है, जो एक श्राप के कारण इस दुनिया से बाहर नहीं निकल पा रही है। उसे अपनी दुनिया में लौटना था। यह सब बात उसने अपने पिता से बताई। उसके पिता ने कहा, ‘‘बेटी, यदि तुम इस दुनिया की नहीं हो और किसी श्राप के कारण यहां फंसी हुई हो, तो मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। तुम अपनी इच्छा से यहाँ से जा सकती हो।’’

फिर निलावंती उस गाँव को छोडने का निश्चय करती है। रास्ते में उसे एक व्यापारी मिलता है, और निलावंती उससे दूसरे गाँव जाने का रास्ता पूछती है। एक अच्छी आत्मा ने उसे बताया था कि 35 मील की दूरी पर एक गाँव मिलेगा, जहाँ एक बरगद का पेड होगा। वहीं से उसे अपनी दुनिया में जाने का रास्ता मिलेगा, लेकिन इसके लिए उसे अपने रक्त के साथ-साथ पशु-पक्षियों की बलि भी देनी होगी।

व्यापारी ने निलावंती को देखकर मंत्रमुग्ध होकर कहा, ‘‘मैं तुम्हें उस गाँव तक छोड दूँगा, लेकिन बदले में तुम्हें मुझसे शादी करनी पडेगी।’’ निलावंती ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है, लेकिन मेरी एक शर्त है? ‘‘रात के समय मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगी और तुम मुझसे इस बारे में कुछ नहीं पूछोगे।’’ व्यापारी ने स्वीकार कर लिया।

फिर वह व्यापारी निलावंती को अपनी बैलगाडी में बैठाकर उस गाँव में ले गया। शर्त के अनुसार, निलावंती ने उस व्यापारी से विवाह कर लिया। रात के समय निलावंती प्रतिदिन बरगद के पेड के नीचे तंत्र-मंत्र करने जाती थी, जहाँ वह अपना रक्त और पशु-पक्षियों की बलि देती थी।

एक दिन, जब निलावंती तंत्र-मंत्र कर रही थी, कुछ गाँव वाले उसे देख लेते हैं और व्यापारी को जाकर सारी घटना बताते हैं। अगले दिन जब निलावंती तंत्रसाधना करने जाती है, तो व्यापारी भी उसके साथ जाता है और उसे तंत्र-मंत्र करते हुए देखता है।

अगले दिन निलावंती के सपने में शैतान आता है और बताता है, ‘‘कल जब तुम तंत्रसाधना करने बरगद के पेड के नीचे जाओगी, तब नदी में एक लाश बहती हुई दिखाई देगी। उसके गले में एक ताबीज होगा, जिसे तुम्हें खोलना है। ताबीज निकालने के बाद, तुम्हें नदी में एक नाव पर सवार आदमी मिलेगा, जिसे तुम्हें ताबीज दे देना है। वह तुम्हें दूसरी दुनिया के दरवाजे तक पहुँचाने में मदद करेगा।’’ शैतान ने यह भी कहा, ‘‘यह तुम्हारे लिए लौटने का एकमात्र मौका होगा, फिर दूसरा मौका नहीं मिलेगा।’’

निलावंती बहुत खुश हुई और रात को बरगद के पेड के नीचे तंत्रसाधना करने गई। वहां उसे नदी में लाश बहती हुई दिखाई दी। वह लाश के पास गई और ताबीज निकालने लगी। उसी समय व्यापारी ने शैतानी रूप में आकर उसे रोकने की कोशिश की। जब निलावंती ताबीज निकालने वाली थी, गाँव वाले वहां आ गए और उसे नरभक्षी समझकर उसे मार डालने की धमकी दी।

गाँव वालों ने निलावंती को तो बचा लिया, लेकिन उन्होंने उस राक्षस को मार गिराया। राक्षस के मरने के बाद वह फिर जीवित हुआ और निलावंती के पास आकर बोला, ‘‘मुझे वह किताब दे दो जिसमें तुमने मंत्र लिखे हैं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।’’ निलावंती ने सोचा कि यदि वह किताब उस शैतान के पास चली गई, तो यह दुनिया के लिए खतरे की बात होगी।

निलावंती ने उस किताब को श्रापित कर दिया और कहा, ‘‘यह किताब तुम्हारे लिए नहीं है।’’ कुछ समय बाद, वह किताब एक साधू को मिली। वह साधू ने उस किताब को पढने के बाद उसे सरल रूप में अनुवादित कर लिया, ताकि सबको समझ में आ सके।

जिसने लालच में आकर इस किताब को पूरा पढ लिया, उसकी तुरंत मृत्यु हो जाएगी, और जिसने इस किताब को आधा पढकर बीच में ही छोड दिया, वह पागल हो जाएगा। यह कहकर निलावंती उस किताब को लेकर भाग गई। उसके बाद निलावंती का आज तक कोई पता नहीं चला।

‘‘निलावंती’’ के बारे में एक और बात प्रसिद्ध थी कि उसे जानने वाला एक मनुष्य आज भी जीवित है, जिसे लोग बाजिंद कहते हैं, और वह महाबलेश्वर के जंगलों में रहता है। कहते हैं उसकी आयु 1000 वर्ष से भी ज्यादा है। अब सबसे आसान तरीका तो यह है कि पहले बाजिंद को खोजा जाए, जो उसे जानता है, और उसके पास से जो जानकारी मिले, उसके आधार पर ‘‘निलावंती’’ की खोज की जाए। एक और बात मैं आपको बता दूं कि जो लोग ‘‘निलावंती’’ के पीछे थे, वे चाहे जिस भी काल में हुए हों या फिर किसी भी जगह से हों, उनमें एक समानता थी। वे सभी महाबलेश्वर के जंगलों में जाते हुए देखे गए थे। उनमें से केवल दो लोग ही जाने के बाद फिर से देखे गए थे, वह भी मृत अवस्था में। बाकियों का, जिनकी संख्या सैकडों में हो सकती है, क्या हुआ, किसी को नहीं पता, क्योंकि उनका ना शरीर मिला था और ना कोई अवशेष।

अब इतनी जानकारी मिलने के बाद, क्या आप अब भी चाहते हैं कि आप भी उस ग्रंथ की खोज में जाएं? तो मैं आपको उस आखिरी इंसान के बारे में बताता हूं, जो निलावंती की खोज में गया था। शायद आपको कोई काम की बात मिल जाए, जो आपको निलावंती को खोजने में मदद कर सके।

उसका नाम रावसाहेब था। वह रत्नागिरी के पास एक गांव का जमींदार था। मुँह में चांदी का चम्मच लेकर जन्मा था, कमी किसी बात की नहीं थी। वह बलवान था, इसलिए धन और बल दोनों से वह अपने सामने हर किसी को झुकाना पसंद करता था। अमीर होने के बावजूद उसे एक बात की कमी हमेशा खलती थी। एक ऐसी बात जिससे सब सुख होने के बाद भी उसकी कई पुश्तों को अफसोस के साथ जीने के लिए मजबूर किया था।

उसका अफसोस यह था कि बहुत पहले उसके खानदान के किसी व्यक्ति ने केवल गलतफहमी के कारण सात कुएं भरने जितना सोना और हीरे जवाहरात समुद्र में डुबो दिए थे। उसे अफसोस यही था कि काश वह गलती सुधारी जा सकती, तो आज उसकी कई पीढियां दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में गिनी जातीं। लेकिन ऐसा तभी हो सकता था जब समय में पीछे जाकर उस गलतफहमी को दूर किया जा सके।

रावसाहेब को पहले यह बात पता नहीं थी कि समय में पीछे जाया जा सकता है। क्योंकि कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस तरह की बात सोच भी नहीं सकता, जो असंभव हो। लेकिन जैसा कि उसके पूर्वजों ने किया था, वह भी उसी धन का पता लगाना चाहता था। उसके लिए उसने भी वही रास्ते अपनाए थे, जो उसके पूर्वजों ने अपनाए थे, जैसे ज्योतिषियों, तांत्रिकों और मंत्रियों के माध्यम से धन का पता लगाना।

लेकिन बहुत कुछ करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हो पाया था। समय और पैसा दोनों ही बर्बाद हो रहे थे। लेकिन उस अमर्यादित धन के आगे इस धन की कोई कीमत नहीं थी। और ऐसे में एक दिन रत्नागिरी में एक अद्भुत तांत्रिक आया। लोग कहते थे कि उसने पिशाचों को वश में किया हुआ था, जो हर हुक्म मानते थे।

रावसाहेब भी रत्नागिरी गये और उस तांत्रिक से मिले। पहली ही मुलाकात में तांत्रिक ने रावसाहेब पर इतनी गहरी छाप छोडी कि उसने तांत्रिक को अपनी हवेली पर बुलाया। तांत्रिक आने के लिए मंजूर हो गया। दो दिन बाद ही तांत्रिक रावसाहेब की हवेली पर था। उसे अच्छी मेहमान नवाजी दी गई, और हर तरह से उसे प्रभावित करने की कोशिश की गई। रावसाहेब ने यह भी सुना था कि तांत्रिक के पास अंजन बनाने की विधि है। प्राचीन काल से ही यह मान्यता रही है कि किसी खास रासायनिक काजल अंजन को आंखों पर लगाने से जमीन के नीचे दबा हुआ खजाना दिखाई देता है। वही पाने के लिए रावसाहेब इतनी मेहनत कर रहा थे।

एक हफ्ता निकल गया, लेकिन तांत्रिक ने कुछ नहीं कहा, वह तो अच्छे भोजन और मुलायम बिस्तरों का आनंद ले रहा था। रावसाहेब का सब्र टूटने लगा था, लेकिन उसे डर था कि अगर तांत्रिक को बुरा लगा तो कहीं वह उसे श्राप न दे दे, इसलिए उसने चुप रहना ही ठीक समझा।

रावसाहेब का यह धैर्य व्यर्थ नहीं गया। दूसरे दिन तांत्रिक और रावसाहेब एक कमरे में अकेले बैठे थे, तब तांत्रिक ने रावसाहेब से पूछा कि उसे उससे क्या चाहिए। तब रावसाहेब ने अपनी इच्छा और उस खानदानी खजाने के बारे में तांत्रिक को बताया।

तांत्रिक की आंखें चमक उठीं, उसने जीवन में कभी इतना खजाना नहीं सुना था। लेकिन उसने अपने चेहरे को निर्विकार रखा और अपनी लालसा नहीं दिखाई। फिर उसने रावसाहेब को अपना इतिहास बताना शुरू किया, कि कैसे वह तांत्रिक बना। उसने जो बताया वह यह था!

‘‘मैं भी पहले एक सीधा साधा किसान था। मेरा नाम बाबु था। मेरी शादी हो चुकी थी, लेकिन माँ-बाप में से कोई भी तब जीवित नहीं था। मेरे पास कुछ बीघा जमीन थी उससे ही अपना गुजारा करता था। एक शाम मैं खेत से लौट रहा था तो मुझे अपने दोस्त जो आग जलाकर उसके पास बैठकर गप्पे लडा रहे थे वे दिख गये। उन्होंने भी मुझे देखा और आवाज लगाई कहा, की मैं भी थोडी देर उनके साथ बैठूं काम तो रोज का लगा ही रहेगा। मुझे भी यह बात ठीक लगी की आदमी को थोडा समय खुद के लिये भी निकालना चाहिये। घर में बीवी राह देख रही होगी यह बात तो मेरे दिमाग में थी लेकिन फिर मैंने सोचा की एकाद दीन थोडी देर हो गई तो क्या हो जायेगा कोई बहाना बना लेंगे। गप्पे लडाते लडाते समय का ध्यान ही नहीं रहा बहुत देर हो गई। मैं गांव के बाहर रहता था। मैंने अपने दोस्तों से इजाजत मांगी और अपने रास्ते लग गया। मुझे खेत जाने के लिये पूरा गाँव पार करना पडता था, क्योंकि मेरे घर और खेत के बीच मे गाव था। और एक बात थी, मुझे डर बहुत लगता था, और मेरे घर जाने के रास्ते में श्मशानभुमी थी। मैं घर इसलिये जल्दी जाता था की रात को श्मशान के पास से गुजरना ना पडे लेकिन उस दिन मुझे बहुत देर हो गई थी।

मैने जैसे-तैसे अपने मन को तैयार किया क्योंकि आगे श्मशान भूमि यानी भूतों का इलाका शुरू होने वाला था। मुझ जैसे डरपोक इंसान के लिए यह बात बहुत गंभीर थी। मैं तेजी से अपने कदम बढाने लगा। मुझे बस अपने घर पहुँचना था। अब श्मशान भूमि शब्द ही मुझे डरा रहा था। मैं मन में राम नाम जपने लगा। अचानक से अंधेरा बहुत घना हो गया। मेरा डर अब चरम सीमा तक पहुँच गया। मुझे अब इतना ज्यादा डर लग रहा था कि अब इसी डर की वजह से मेरी मौत न हो जाए, इस बात की चिंता होने लगी थी। श्मशान के सन्नाटे को उल्लुओं की आवाज भंग कर रही थी जिससे माहौल और डरावना हो गया। तभी अचानक से किसी के चीखने की आवाज आई। डर की एक तेज लहर मेरे सीने से दौड गई। मैं उसी जगह पर ही खडा रहा। दूर कहीं कुछ चमक रहा था। लगता था किसी की चिता जल रही थी। अब मेरी हालत इतनी गंभीर हो गई कि मेरे सीने में तेज दर्द होने लगा। मेरी साँसें तेजी से चलने लगीं और धडकनें सामान्य से दोगुनी हो गईं। मुझे फिर से वैसी ही चीख सुनाई दी, कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा, लेकिन वह चीख नहीं थी, वह तांत्रिक उसे पुकार रहा था। मैं सोच में पड गया कि क्या करना चाहिए, क्या मुझे तांत्रिक के पास जाना चाहिए या अपनी जान बचाकर भागना चाहिए। मैंने निर्णय कर लिया कि वह अपनी जान बचाएगा। मैं भागने लगा, मुझे जल्दी से अपने घर जाना था जहाँ मैं खुद को महफूज मानता था। थोडी ही दूर गया था कि वह तांत्रिक मेरे आगे ही प्रकट हो गया। अब तो मुझे लगा कि मैं पक्का मर जाऊँगा। लेकिन तांत्रिक ने अपना अंगूठा मेरे माथे पर लगाकर मुझे शांत किया। मुझे बहुत आश्चर्य लग रहा था कि मेरा डर न जाने कहाँ गायब हो गया था। उस तांत्रिक ने मेरा हाथ पकडकर उस जलती हुई चिता के पास लेकर गया। मैंने देखा वह चिता कम और हवन कुंड ज्यादा लग रहा था। उसके आस-पास बहुत सी अजीबोगरीब चीजें रखी हुई थीं। उनमें से कुछ तो भयानक भी थीं जैसे कि इंसान की खोपडी, खून से भरे प्याले, अलग-अलग मिट्टी के बर्तनों में कई पशुओं के अंग भर कर रखे हुए थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब चल क्या रहा है। मैंने तांत्रिक से पूछने का सोचा लेकिन तांत्रिक ने जैसे मेरी इच्छा भाँप ली। उसने उँगली मुँह पर रखते हुए इशारे से चुप रहने के लिए कहा। मैं बहुत देर तक बैठा रहा जब तक कि उस तांत्रिक ने सारी विधियाँ पूरी नहीं कीं। अब मध्यरात्रि हो रही थी, रात शायद अमावस्या की रही होगी। तांत्रिक उसकी विधि पूरी होते ही वहाँ से उठा और उसने मुझसे कहा कि उसे आगे की विधि करने के लिए किसी स्त्री की बलि देनी होगी जिसको अब तक बच्चा न हुआ हो। मेरा दिल दहल उठा, उसको लगा कि वह किस मुसीबत में पड गया है।

मुझे बच्चा नहीं हुआ था और मेरी बीवी घर पर थी। मैं एक साधारण किसान था। मेरी और मेरी पत्नी का न कभी झगडा होता था, न वह मुझे किसी बात के लिए तंग करती थी। उस तांत्रिक के पास न जाने कौन सी ऐसी शक्ति थी कि मैंने उसे अपनी बाँझ बीवी के बारे में बताया। बताते समय भी मुझे लग रहा था कि यह ठीक नहीं है, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन मेरी जुबान अब मेरी नहीं, किसी और के बस में थी।

तांत्रिक ने जैसे ही मुझसे मेरी बीवी के बारे में सुना तो वह खुश हो गया। उसने मेरे हाथ में एक बहुत बडा छुरा दिया और कहा कि अपनी बीवी को यहाँ ले के आओ या फिर उसका सिर काट कर ले के आओ। साथ में एक इंसान की खोपडी भी दी और कहा कि यदि बीवी साथ में नहीं आती और अगर मैं सिर काटने का फैसला लेता हूँ तो जैसे ही गर्दन पर छुरा लगाएँ, तुरंत इस खोपडी में खून जमा करूँ, बिना एक भी बूँद जमीन पर गिराए। मैंने छुरा हाथ में पकड लिया, मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैंने ऐसा क्यों किया।

मैं घर की तरफ जाने लगा जहाँ मेरी बीवी सोच रही होगी कि उसका पति हर रोज दिन ढलने से पहले खेत से लौट आता है लेकिन आज ऐसा क्या हुआ कि मध्यरात्रि के बाद भी वह नहीं आ पाया। शायद उसने बहुत देर तक मेरी राह देखी थी और वैसे ही दरवाजे के पास सो गई। मेरा घर सुनसान इलाके में नहीं था। मेरे घर के आस-पास भी थोडी दूरी पर कई घर बने हुए थे। लेकिन देहातों में लोग जल्दी सो जाते हैं तो दो-चार कुत्तों के अलावा कोई दिख नहीं रहा था। हालाँकि कुत्ते कोई नया इंसान गुजरने पर भौंकते जरूर थे, लेकिन मुझसे उनकी पहचान थी इसलिए वह हिले तक नहीं।

मैं अपने घर की तरफ बढा। दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया था। घर में कुछ था ही नहीं तो चोरों का कैसा डर। सिर्फ आगे धकेला हुआ था। मैंने सोचा यह अच्छा हुआ। अगर दरवाजा बंद होता तो बीवी जाग जाती जिससे सारा पासा पलट सकता था। बीच-बीच में मुझे हैरानी भी हो रही थी कि मैं इतना निर्दयी कैसे हो सकता हूँ कि किसी तांत्रिक के कहने पर अपनी बेगुनाह बीवी को बेवजह मार डाले। लेकिन यह मेरा दिमाग सोच रहा था, शरीर की कृति इससे बिलकुल विपरीत थी। जैसे कोई और मेरे शरीर को चला रहा हो।

मैं दरवाजा धकेल कर अंदर गया तो वहीं पर मेरी बीवी सोती हुई दिख गई। मेरा दिमाग जोर-जोर से चिल्लाने को चाहता था। मैं चाहता था कि बीवी को चिल्लाकर उठा दूँ और भाग जाने के लिए कहूँ। लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाया। मैंने धीरे से छुरा और खोपडी बगल में रख दी। अब मेरे हाथ बहुत सफाई से बीवी का गला घोंट रहे थे। मेरी अभागी बीवी को आँखें खोलने तक का मौका तक नहीं मिला। वह छूटने के लिए बहुत छटपटाई लेकिन सिर्फ कुछ पल के लिए और फिर सब कुछ शांत हो गया। मेरा मन बहुत व्याकुल हो गया लेकिन शरीर से मैं वैसा ही निर्विकार था।

मैं अपने घर में थैला ढूँढने लगा जिसमें छुरा और खोपडी रख सकूँ। मुझे थैला मिल गया। मैंने थैले में छुरा और खोपडी रखी। थैला कंधे पर लटका दिया। फिर धीरे से अपनी बीवी का शव उठाकर कंधे पर लिया और घर से बाहर आया। बाहर की कुंडी लगाकर घर बंद किया और श्मशान की ओर बढा, जहाँ वह तांत्रिक मेरी राह देख रहा था। श्मशान में पहुँचने के बाद मैंने अपनी बीवी का शव उस हवन कुंड के पास लिटा दिया और तांत्रिक को कहा कि मैं उसकी गर्दन काटने का धैर्य नहीं कर पाया। तांत्रिक ने कहा कि वह यह काम खुद कर लेगा। उसने मुझे बैठने का इशारा किया और उसने दूसरी विधियाँ आरंभ कर दीं। उसने मेरी बीवी के शव की माँग पर सिंदूर लगाया। जैसे ही आग प्रज्वलित हो गई तो उसने बडी सफाई के साथ मेरी बीवी का सिर धड से अलग कर दिया। खून की धारा बहने लगी जो तांत्रिक ने पहले से ही नीचे पकडे इंसानी खोपडी में गिर रही थी। क्योंकि उसे मरे ज्यादा देर नहीं हुई थी तो खून अभी भी गरम था। जब खोपडी खून से पूरी भर गई, तो तांत्रिक ने आधे से ज्यादा खून हवन कुंड में डाल दिया। थोडा खून जो बचा हुआ था वह उसे कुछ मंत्र बोलने के बाद घूँट-घूँट कर पीने लगा।

मैं बिलकुल सुन्न हो गया। ऐसा अघोरी कृत्य मैंने कभी सपने में भी नहीं देखा था जैसा मेरी नजरों के सामने घट रहा था। तांत्रिक ने खून पीने के बाद उसी छुरे से मेरी बीवी के गले से नाभि तक एक चीरा लगाया और उसमें हाथ डालकर दिल, आँतें और गुर्दा आदि अंग निकाल-निकालकर उस अग्नि में डाल रहा था, साथ ही भयानक आवाज में मंत्रों का उच्चारण भी कर रहा था। यह सब अगले एक घंटे तक चलता रहा जब मेरी बीवी के कपडों के अलावा कुछ नहीं बचा तब यह सब थम गया। अब श्मशान का सन्नाटा महसूस होने लगा था। कभी-कभी चट-चट आवाजें करती हवन कुंड की लकडियों की आवाज के अलावा कोई हलचल नहीं हो रही थी। अग्नि पहले से ज्यादा धू-धू कर जल रही थी। तभी घना कोहरा छाने लगा, लेकिन सिर्फ मेरे और तांत्रिक के आस-पास जैसे एक घेरा बन रहा हो। हवन कुंड से एक भयानक पिशाच प्रकट हो गया। उसने तांत्रिक से कहा कि वह उसका कोई भी हुक्म मानेगा और पूछा कि अभी उसे क्या करना है। तांत्रिक ने कहा कि फिलहाल उसको कुछ नहीं करना है, लेकिन जब मैं बुलाऊँ तब उसे आना होगा। पिशाच ने यह बात मान ली और वह उसी तरह उस कोहरे में गायब हो गया जैसे वह आया था।

तांत्रिक ने मुझसे कहा कि हमें अब यहाँ से निकलना होगा क्योंकि थोडी ही देर में सूरज निकल जाएगा और यदि किसी ने हमें यहाँ देख लिया तो बहुत हंगामा हो जाएगा। तांत्रिक ने सारा सामान समेट लिया और मुझसे भी कहा कि वह वहाँ मौजूद हर एक निशानी को मिटा दे जिससे वहाँ घटी घटनाओं के बारे में किसी को पता चल सकता हो। मैंने भी वही किया जो मुझसे कहा गया।

सुबह हो जाने के बाद तांत्रिक श्मशान के पीछे के रास्ते से निकलने लगा। उसने मुझे भी अपने साथ आने के लिए कहा। हवन कुंड और बाकी सब तांत्रिक विधियों की चीजें हटाने के बाद से ही मैं पहले जैसा बन गया था और डर से काँपने लगा था। मुझे समझ में आ गया कि मेरे हाथ से कितना बडा गुनाह हुआ है। मैं तांत्रिक से पूछने लगा कि मेरे साथ उसने क्या किया था, लेकिन तांत्रिक ने जवाब दिया, कि अगर मैं उसके साथ चलूँ तो मुझे सब कुछ बता दिया जाएगा। वैसे भी अब वहाँ पर रहना मेरे लिए अच्छा नहीं होता, यही सोचकर मैं उसके साथ चल पडा।

लगभग चार दिन तक सफर करने के बाद हम दोनों रात को उस खंडहर में पहुँचे जहाँ वह तांत्रिक रहता था। मैंने वहाँ पर देखा तो वहाँ भी वैसी ही अघोरी चीजें दिखाई दीं जैसी श्मशान में थीं। फर्क यह था कि तब मैं उन सब का हिस्सा नहीं था, लेकिन अब न चाहते हुए भी वह मेरी जिंदगी में दाखिल हो चुकी थी। यह मेरे भविष्य का हिस्सा बनने वाली थी। हम दोनों ही बहुत थक चुके थे, हालाँकि हमने बीच-बीच में रुक कर थोडा सा आराम किया था, लेकिन वह हमारी थकान दूर करने के लिए काफी नहीं था। इसलिए आते ही तांत्रिक और मैं दोनों सो गए। सूरज माथे पर आया तब जाकर तांत्रिक की आँखें खुलीं। वह उठा और साथ में मुझे भी उठाया। हम दोनों नदी पर जाकर स्नान करके आए। हम दोनों को भूख भी बहुत लगी थी क्योंकि चार दिनों से बहुत थोडा अन्न पेट में गया था। लेकिन वहाँ पर न चूल्हा था न भोजन की और कोई व्यवस्था। लगता था कि तांत्रिक वहाँ से कई महीनों के लिए बाहर आया था। तभी तांत्रिक ने जोर से पुकारा ‘‘सुलेमान’’। चार दिन पहले अमावस्या की रात को एक स्त्री की बलि देकर जिस पिशाच को वश में किया था वही पिशाच आगे आकर खडा हो गया और पूछने लगा कि उसके लिए क्या आदेश है।

तांत्रिक ने उसे सबसे अच्छा खाना और पीने के लिए महँगे से महँगे पेय लाने के लिए कहा। पिशाच ने सिर्फ चुटकी बजाई और जिन चीजों की माँग की गई थी वह चीजें सामने थीं। यह देखकर मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं। मैं समझ गया कि क्यों तांत्रिक ने इसे वश में करने के लिए इतनी मुसीबत मोल ली थी। वह कोई भी इच्छा पूर्ण कर सकता था। हम दोनों ने भरपेट खाना खाया और साथ में शरबत, ठंडाई का भी स्वाद लिया।

तांत्रिक ने मुझे कुछ बताने का वादा किया था। तब ताज्जुब ही क्या था? यह तो मुझे याद नहीं है लेकिन वह तांत्रिक जमात होती है जो नरमांस भक्षण करती है। क्योंकि मैं अघोरी के साथ रहता था इसलिए हर कोई मुझसे डरता था। वैसे मेरा नाम नहीं रखा गया था लेकिन चंद्रातांत्रिक मुझको कन्नम कहकर पुकारता था। बचपन से ही नरबलि और पशुबलि को देखते-देखते मेरी जैसे आत्मा मर गई थी। उस अघोरी के साथ रहने से मैं भी अघोरी ही बन गया था। मरने से पहले चंद्रातांत्रिक ने मुझको पिशाच वश करने की विधि बताई और कहा कि यदि किसी भी तरह से तुम्हारा गुजारा न चले तभी पिशाच वश करने की सोचना, तब तक नहीं। क्योंकि पिशाच वश करने के लिए तुम्हें वह करना पडेगा जो आज तक तुमने कभी नहीं किया। किसी गाँव की श्मशान भूमि में जाकर पहले बकरे, कुत्ते और मुर्गे की बलि चढानी होगी और फिर किसी बाँझ स्त्री की उसी के पति के माध्यम से बलि चढानी होगी। यदि तुम इसमें सफल हुए तो पिशाच वश में हो जाएगा और तुम्हारी हर एक इच्छा पूरी करेगा। उस पिशाच को हमेशा के लिए अपने हुक्म में रखने के लिए हर अमावस्या को तुम्हें एक बच्चे की बलि चढानी होगी। तभी वह तुम्हारा हर एक हुक्म मानेगा नहीं तो तुम्हारी बलि लेकर वह फिर से अदृश्य हो जाएगा। यह कहकर चंद्रातांत्रिक ने घंटे भर बाद आखिरी साँस ली।

बीस सालों तक मैं खुद का पेट भरने के लिए भटकता रहा। क्योंकि मैं सिर्फ अघोरी के साथ रहता था, लेकिन मुझे सभी तांत्रिक क्रियाएँ नहीं आती थीं, तो मेरा गुजारा मुश्किल से ही हो पाता था। तो मैंने अब पिशाच को वश में करने की सोची और साल भर से मैं किसी की तलाश कर रहा था। हर ऐसे गाँव में जाकर जहाँ बाँझ औरतें हैं, मैंने यह विधि पूरी करने का प्रयत्न किया, लेकिन सफल नहीं हो सका। फिर मैं तुम्हारे गाँव में आया। मैंने एक पूरा सप्ताह तुम पर नजर रखी और फिर यह विधि आयोजित की जिसमें मैं पूरी तरह से कामयाब हो गया।

‘‘अब मुझे एक सहायक की आवश्यकता है और मेरे लिए यह काम तुम करोगे। मैं तुम्हारी हर एक इच्छा पूरी कर सकता हूँ’’ यह तुम अच्छी तरह से जानते हो। और जब मेरा अंत समय आ जाएगा तब मैं यह पिशाच तुम्हें ही सौंप दूँगा। इसके बदले तुम्हें सिर्फ इतना करना होगा कि हर महीने की अमावस्या को बलि देने के लिए एक बच्चा तुम्हें लाना होगा।’’ कन्नम ने बात पूरी की।

मैंने उससे पूछा कि यह काम वह पिशाच से क्यों नहीं करवाता तो उसने कहा कि यही एक काम है जो पिशाच नहीं कर सकता’’ हमें पिशाच के लिए करना पडेगा। मैं मन में बहुत डर गया था। मैं सोचने लगा कि जब मैंने अपनी बीवी का कत्ल किया था तब मैं होश में नहीं था और मेरा खुद पर काबू भी नहीं था। लेकिन अब मैं पूरे होश में था और ऐसा घिनौना काम फिर से नहीं करना चाहता था। तो मैंने सोचा कि जैसे-तैसे इस तांत्रिक से अपना पीछा छुडा लूँ, फिर देखा जाएगा।

कन्नम मुझे किसी बच्चे को लाने के लिए पीछे पड गया। मैंने कह दिया कि मैं एक बच्चे को चुन चुका हूँ और बडी आसानी से मैं अमावस्या को उसे वहाँ लाऊँगा, वह बलि की तैयारी की तरफ ध्यान दे। इतना कहने पर भी तांत्रिक निश्चिंत नहीं हुआ था। क्योंकि यह उसकी जिंदगी और मौत का सवाल था। उसने मुझे उसी दिन उस बच्चे को हाजिर करने को कहा। मैंने कहा ठीक है और बाहर निकल पडा। दो दिन बाद ही अमावस्या थी। लेकिन मैं वापस उस जगह तभी गया जब अमावस्या हो चुकी थी।

मैंने वहाँ जाकर देखा कि कन्नम का सिर्फ शरीर पडा है जिसका सिर नहीं है, तो मैं समझ गया कि अमावस्या को पिशाच अपनी बलि लेने के लिए आया होगा और न मिलने पर उसने कन्नम का सिर खा लिया।

कन्नम की चाह की वजह से मेरी जिंदगी बर्बाद हो चुकी थी। न मेरा घर बचा, न मेरा परिवार। न ही मैं अब मेरे गाँव वापस जा सकता था। मैंने बहुत देर तक कन्नम के शरीर के पास बैठकर सोचा कि आगे क्या करूँ, लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था। मैंने कन्नम के घर यानी उस खंडहर की तलाशी ली। कोई कीमती चीज तो नहीं मिली, लेकिन एक मंत्रों की किताब मिल गई जिसमें अंजन बनाने की जानकारी थी। मैंने वह किताब उठाई तो उसी जगह पर मुझे एक कागज दिखा जिस पर हाथ से कुछ लिखा हुआ था। थोडा सा पढने पर पता चला कि वह अंजन बनाने की और इस्तेमाल करने की विधि है। मैंने वहाँ से एक थैला उठाया, उसमें किताब और कागज रखा और निकल पडा।

पास ही के पहाड पर मुझे एक गुफा मिल गई जहाँ पर कोई आता-जाता नहीं था और कोई जंगली जानवर भी नहीं थे। पास ही झरना बहता था तो पीने के पानी की कोई समस्या नहीं थी। वहाँ से थोडी ही दूर पर एक बस्ती थी जहाँ से मैं भिक्षा माँग कर लाता और दिन भर उन टोटकों को सिद्ध करने की कोशिश करता। मैंने सबसे आसान लगने वाले टोटके जिनमें कोई बलि या किसी की हत्या की जरूरत न हो चुने और वशीकरण, दूसरों के मन की बात जान लेना आदि टोटके सिद्ध कर लिए। मैं अब अंजन तैयार करने के पीछे लग गया। उसके लिए बहुत सारी चीजों की आवश्यकता थी जिन चीजों का नाम तक मैंने कभी नहीं सुना था। लेकिन मैं कभी-कभार बस्ती में किसी से बात करता था तो वह लोग कई चीजों की जानकारी दे देते थे। और मुझे इसका एक फायदा यह हुआ कि वह लोग मुझे अब तांत्रिक कहने लगे थे। मैं भी कभी किसी का बच्चा बीमार हो जाए या किसी का जानवर, किसी की बेटी को बच्चा नहीं होता हो उसके लिए अपने पास से टोटके कर देता था। उनको जब उसके परिणाम अच्छे मिले तो वह मुझे और भी ज्यादा मान देने लगे। जैसे ही मेरे पास वह सब चीजें जमा हो गईं जिनकी अंजन बनाने के लिए जरूरत थी, मैंने रात-दिन एक करके अंजन बना ही दिया। अंजन बनाने की विधि लिखने वाले ने यह भी चेतावनी लिखी थी कि यदि अंजन ठीक से नहीं बना तो लगाने वाला हमेशा के लिए अंधा बन जाएगा। वह तो आँख में लगाने से ही पता चल सकता था। मैंने आर या पार का निश्चय कर लिया और भगवान का नाम लेकर वह अंजन अपनी आँखों में लगाया। पहले मेरी आँखों में इतना तेज दर्द हुआ कि जैसे खौलता हुआ तेल मेरी आँखों में पड गया हो। मुझे लगा कि मेरी आँखें चली गईं, मैं अंधा बन गया। मैंने जो अंजन बनाया था वह शायद गलत बना था। ऐसे कई विचार मेरे मन में आ रहे थे, मैं दर्द से चिल्ला रहा था। गुफा की दीवारों पर अपने सिर को पटक रहा था। कुछ देर बाद जब थोडा सा दर्द कम हुआ और धुंधला नजर भी आने लगा तो लगा कि मैं पूरी तरह से अंधा नहीं हुआ हूँ। लेकिन मेरी आँखों को कुछ भी नहीं हुआ था और अंजन भी सही-सही बना था, यह मुझे तुरंत पता चला जैसे ही मैंने अपनी आँखों को छुआ, वह बिल्कुल बर्फ सी ठंडी महसूस हुई। अब समस्या यह थी कि अंजन का प्रथम प्रयोग कहाँ किया जाए। मैंने दो दिन का समय जाने दिया जब मैं मेरी आँखों की ठंडक का आदी हो गया तो मैं तुरंत उस बस्ती में गया जहाँ भिक्षा के लिए जाता था। दो दिन आँखों के दर्द के कारण न मैं भिक्षा के लिए गया था न कुछ खाया था। जोरों से भूख लगी थी। मैं बस्ती में गया तो लोगों ने पूछा कि दो दिन क्यों नहीं आए, मैंने बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। एक अधेड उम्र के आदमी ने मुझे उसके घर पर भोजन के लिए बुलाया। क्योंकि मुझे बस्ती में बहुत मान दिया जाता था तो मैं मना नहीं कर सका और दूसरा कारण यह भी था कि अब मुझमें इतनी ताकत नहीं थी कि यहाँ से भिक्षा लेकर वह गुफा में जाकर खाऊँ।

जब मैं उस आदमी के घर पहुँचा जिसका नाम आत्माराम था, उसकी पत्नी ने भोजन परोसा। मैंने उसे भी अपने साथ भोजन करने के लिए कहा। हम दोनों ने भोजन किया और भोजन के बाद जब हम गप्पे लडाने के लिए बैठे तो मैंने अभी तक भूख की वजह से ध्यान नहीं दिया था कि वह आदमी बहुत गरीब था। घर बहुत साधारण था और सामान तो न के बराबर था। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारा गुजारा ठीक से नहीं चलता तो उसने बताया कि उसे तब से काम करने के लिए मन नहीं लगता जब से किसी बुजुर्ग ने यह बताया कि उसके दादा जी ने बहुत सारा धन एक घडे में बंद करके खेत में कहीं गाड दिया है। तो तब से वह दिन भर खेत का एक-एक हिस्सा खोदता रहता है। इसलिए बाकी चीजों की तरफ ध्यान देने के लिए समय नहीं मिलता। उसकी बीवी ही किसी खेत पर रोजी के लिए जाती थी जिससे जैसे-तैसे उनका गुजारा चल जाता था। जैसे ही मैंने खेत में धन की बात सुनी, मुझे अंजन की परीक्षा लेने का मौका दिखा। मैंने उससे कहा कि अगर मैं उसे उस धन का सही पता बता दूँ तो क्या मुझे वह उसमें से आधा धन देगा? तो उसने मेरी बात मान ली।

उसी रात मैं उसे लेकर उसके खेत में गया। जैसा कि मैंने अंजन के उपयोग के बारे में पढा था, उसके लिए हिरण के सींग चाहिए थे जो मेरे पास पहले से थे। मैं उससे खेत को देखने लगा। हिरण का सींग आँख पर लगाते ही जमीन मानो जैसे काँच की बनी हुई हो ऐसी दिखने लगी। दूर एक आम के वृक्ष के नीचे मुझे कुछ चमकता दिखाई दिया। मैं आत्माराम के साथ उस वृक्ष के पास गया तो मैंने फिर से हिरण का सींग आँखों पर लगाया और जमीन की तरफ देखने लगा। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने स्पष्ट रूप से एक पीतल का घडा सोने सहित जमीन के अंदर करीब तीन हाथ नीचे देखा। मैंने आत्माराम को वहाँ खोदने के लिए कहा। क्योंकि वह दस-बारह सालों से सिर्फ खोदने का ही काम कर रहा था तो उसने कुछ ही देर में तीन हाथ गहरा गड्ढा खोद डाला और घडा साफ तौर से दिखाई देने लगा। हम दोनों ने मिलकर वह घडा ऊपर निकाला जो बहुत वजनदार था। उसमें बहुत सारे सोने के सिक्के थे। जैसा कि तय हुआ था, उसने ईमानदारी से उसमें से आधे सिक्के मुझे दिए। मैंने उसे एक कपडे में बाँधकर अपनी गुफा की ओर चल पडा और वह अपने घर की ओर। दूसरे दिन पूरी बस्ती में यह बात फैल गई। मेरी गुफा के चारों ओर तो मानो मेला लग गया था। उस दिन से मेरी जिंदगी ही बदल गई। खजाना ढूँढने वाला तांत्रिक इसी नाम से मेरी प्रसिद्धि हो गई। अब मेरे पास जयादातर ऐसे ही लोग आते जिनको अपने खेत या घर से गडा हुआ धन निकालना हो। पर हर जगह धन होता हो ऐसा नहीं था। कई जगह सिर्फ अफवाहें होती थीं। फिर भी मैंने कई लोगों के घर के खजाने ढूँढने में मदद की और उसमें से आधा हिस्सा कमाया। लेकिन अब तक की मेरी सबसे ज्यादा कमाई सिर्फ 500 सिक्कों की थी। जब मैंने तुम्हारे मुँह से तुम्हारे खानदानी खजाने के बारे में सुना तो मुझे लगा कि अगर यह खजाना ढूँढने में मैं तुम्हारी मदद कर सका तो मुझे जिंदगी भर कोई काम करने की जरूरत नहीं है। मैंने मेरी पूरी कहानी तुम्हें इसलिए बताई कि जब मैं तुमसे आधे खजाने की माँग करूँ तो तुम मुझे लालची न समझो। तांत्रिक ने बोलना खत्म किया।

राव साहब ने कहा, ‘‘यह सब सुनकर मेरा आपके प्रति विश्वास और भी बढ गया है। मैं आप पर विश्वास करता हूँ।’’ तांत्रिक ने राव साहब से कहा कि हर खजाने की अपनी ही शुरुआत एक जगह के पता चलने पर होती है। और जैसा कि राव साहब ने बताया था कि उसके पुरखों ने उनका खजाना समुद्र में डुबो दिया है तो तांत्रिक ने उससे पूछा कि उसे यह बात कैसे पता चली। राव साहब ने एक बही के बारे में बताया जिसमें उसके परदादा ने खजाने के बारे में लिखा था। तांत्रिक को भी राव साहब ने वह बही दिखाई जिसमें लिखा हुआ था।

‘‘थे खजाने बहुत दुनिया में लेकिन..... यह खजाना खोजना नहीं है मुमकिन........ भर जाते कुएँ सात ऐसी वह राशि धन की........ देखकर वैभव सारा मिट जाती प्यास मन की........ क्या कारण था पता नहीं जो आया इसकी राह मंे........ पुष्तें कितनी चली गई इस धनराषी की चाह में........ कई वीरों ने प्राण त्यज दिये धनपर्वत के इस शोध में........ लेकिन डुबा दी गई अंनत धनराषी सागरतीर्थ की गोद में’’

तांत्रिक ने उस बही में लिखी यह पंक्तियाँ पढीं तो उसे भी कुछ समझ नहीं आया। हालाँकि रत्नागिरी के पास समुद्र तो था लेकिन तांत्रिक को यह नहीं समझ आ रहा था कि बिना किसी के जाने इतना सारा धन समुद्र में डुबोना मुमकिन नहीं है। किसी ने तो उसे देखा होगा। क्योंकि अगर इतने सारे धन को सागर में डुबोने की बात सच है तो यह काम एक दिन में तो नहीं हो सकता था।

तांत्रिक ने भी बहुत सोचा मगर उसको इसका समाधान नहीं मिल पाया। उसने वह बही फिर से देखी तो उसे कई पन्नों पर कुछ उलटे अक्षर जो आसानी से नजर भी नहीं आते और पढे भी नहीं जाते थे दिखाई दिए। उसने उस कागज को उठाकर प्रकाश की ओर पकडा तो कुछ अक्षर नजर आए। उसने वह अक्षर कागज पर उतार दिए। वह उलटे दिख रहे थे इसलिए आईने के सामने पकड लिए तो उसे एक नाम नजर आया ‘‘निलावंती’’। तांत्रिक ने जल्दी से राव साहब को बुलाया और उसे उसके बारे में बताया जो उसे अभी पता चला था। निलावंती नाम सुनकर राव साहब भी चौंक गया क्योंकि तांत्रिक और राव साहब भी महाराष्ट्र के बाकी के लोगों की तरह इस प्राचीन लोककथा के बारे में जानते थे कि निलावंती नाम का एक ग्रंथ है जिससे पशु-पक्षियों की भाषा समझी जा सकती है। लेकिन इसका संबंध इस खजाने से कैसे है यह समझ नहीं आ रहा था। राव साहब की हवेली पर एक नौकर काम करता था जिसका नाम था माणिक। उसने मालिक और तांत्रिक की बातें सुनी, वह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसका मालिक कई वर्षो से खजाने की खोज में लगा हुआ था। तो शायद उनको अपनी जानकारी से मदद हो जाये, यह सोचकर उसने रावसाहेब को कहा कि वह निलावंती के बारे में कुछ जानता है।

राव साहब ने बताने को कहा तो उसने बताया कि सुना है कि निलावंती किताब में समय में पीछे जाने का भी ज्ञान लिखा हुआ है, शायद आपके पुरखे उसकी मदद से वह खजाना खोजना चाहते हों। राव साहब और तांत्रिक दोनों ही उस बात से सहमत हो गए क्योंकि निलावंती के बारे में जितनी भी किंवदंतियाँ प्रचलित थीं उनमें से यह भी एक थी।

राव साहब ने पूछा, ‘‘लेकिन माणिक यह तो बताओ यह निलावंती असल में है भी या नहीं? क्योंकि मैंने आज तक कई लोगों के मुँह से इसके बारे में सुना है लेकिन मुझे एक भी इंसान ऐसा नहीं मिला जिसने पढने की बात तो दूर, निलावंती को देखा भी हो।’’

‘वह कहाँ है यह तो मैं नहीं जानता, हाँ लेकिन उसे खोजने के लिए कहाँ जाना पडेगा यह बता सकता हूँ। क्योंकि मैंने जो भी सुना है उसके अनुसार महाबलेश्वर के जंगलों में बाजिंद रहता है, उसे निलावंती के बारे में जरूर पता होगा क्योंकि वह भी जानवरों की भाषा बोलता है,’ माणिक ने बताया।

‘‘ठीक है तो फिर हम खुद ही बाजिंद को ढूँढेंगे और उससे निलावंती के बारे में पता लगाएँगे। इतने सालों बाद अब जाकर कोई सुराग मिला है खजाने के बारे में, तो अब इसे ऐसे ही जाने नहीं दे सकते।’’ तांत्रिक ने भी सहमती दर्षायी।

क्या राव साहब को बातिंद मिल पायेगा? क्या राव साहब को अपना खोया हुआ खजाना मिल पायेगा? इन सवालों के जवाब जानने के लिए कहानी जंक्षन को सब्सक्राइब करना ना भूलें। मिलते है कहानी के अगले भाग के साथ कल रात 8 बजे। तब तक के लिए अलविदा दोस्तों।


NARESH KUMAR JAIN 3 February 2025
Share this post
Tags
Archive
Sign in to leave a comment